भाषाओं के विवाद कितने गम्भीर और निर्णायक होते हैं इसे भारतीय महाद्वीप से अधिक और कौन समझ सकता है? अभी हाल ही में महाराष्ट्र की एक नगर परिषद के साइन बोर्ड पर उर्दू के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका को ख़ारिज करते हुए माननीय न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसला दिया है. यह निर्णय भाषा और साहित्य से जुड़े सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. गहरी अंतर्दृष्टि, अध्यवसाय और न्याय-चेतना का यह रेखांकित करने योग्य उदाहरण है. ऐसे निर्णय कानूनी भाषा की पेचीदगियों के कारण सर्व समाज के लिए लगभग अपठनीय ही रहते हैं. ऐसे में इस निर्णय का सहज और पठनीय अनुवाद करके ऐश्वर्य मोहन गहराना ने भविष्य के लिए एक रास्ता निकाला है. क्या किसी साहित्यिक पत्रिका में ऐसे किसी निर्णय को आपने इतनी सुथरी भाषा में पढ़ा है? यह ऐतिहासिक है.
तो पढ़िए मेरा यह अनुवाद हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण ऑनलाइन पत्रिका समालोचन में 20 मई 2025 को प्रकाशित मेरा यह अनुवाद. नीचे दिए चित्र पर अथवा यहाँ क्लिक कीजिये.
